गांव में बुआ के लड़के के साथ रंगरलियां -2 antarvasana
Antarvasana : फ्रेंड्स| मैं पल्लवी सिंह अपनी चुदाई कहानी में आपका स्वागत करती हूँ|कहानी के पहले भाग मेरी जवानी पर फुफेरे भाई का दिल आ गयामें अब तक आपने पढ़ा था कि मैं अपने फुफेरे भाई के साथ बाइक पर बैठ कर उसके खेत में लगे ट्यूबवेल पर जा रही थी|
अब आगे फुफेरा भाई| कुछ देर तक तो हम दोनों कुछ नहीं बोले| फिर अंकितमुझे गांव वगैरह के बारे में बताने लगा| थोड़ी देर बाद हम दोनों खेत में पहुंच गए उधर सब अपने अपने खेतों में दूर दूर काम कर रहे थे|
अंकित ने ट्यूबवेल वाले कमरे का ताला खोल लिया पर गेट नहीं खुल रहा था|मैंने पूछा, क्या हुआ?वो बोला, अरे कुछ नहीं| जंग लगने की वजह से ये दरवाजा फंस जाता है और बहुत जोर लगाने पर खुलता है|
खैर … थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद उसने जोर से धक्का लगा कर गेट खोला और ट्यूबवेल चला दिया|फिर उसने ट्यूबवेल की हौदी की तरफ इशारा करते हुए कहा, देखो दीदी| ये होता गांव का स्विमिंग पूल|
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मैंने कहा, अच्छा| हमारे यहां तो काफी बड़ा होता है|अंकित बोला, यहां ज्यादा बड़ा तो नहीं होता| पर पानी लगातार बहता रहता है| कितनी गर्मी हो रही है| मैं नहा लेता हूँ|मैंने कहा, मैं एक्सट्रा कपड़े नहीं लाई वरना मैं भी नहा लेती|
अंकितबोला, अरे दीदी मन है तो नहा लो| यहां कोई नहीं आता| मेरे एक जोड़ी कपड़े अन्दर रखे हैं| आप नहा कर उन्हें पहन लेना| फिर जब ये वाले सूख जाएं तो वापस पहन लेना|
पहले तो मैंने ऐसे ही ना,नुकर सी की| पर फिर सोचा कि नहा ही लेती हूँ|अंकित हौदी में उतर गया था|मैं हौदी की दीवार पर चढ़ गयी तो अंकितने अपना हाथ दिया और मैं भी सूट सलवार पहने ही उसमें उतर गयी|
अंकित को कच्छे में देखा तो उसके आधे नंगे शरीर को देख कर मेरे अन्दर के अरमान भी हल्के हल्के जागने लगे थे और शायद उसके भी अरमान जग रहे थे|एक दो बार तो मेरा मन हुआ कि उसे जोर से किस कर लूं पर मैंने अपने आप को रोका हुआ था|
फिर हम दोनों मस्ती करते हुए नहाने लगे|हम दोनों दुनिया की फिक्र छोड़ कर खूब मस्ती से ट्यूबवेल के पानी में नहाए|लगभग आधा घंटा के बाद मैं नहा चुकी तो वहां से निकल गयी और ट्यूब वेल वाले कमरे में कपड़े बदलने चली गयी|
मैंने गेट हल्का सा उड़काया और अपने सारे गीले कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गयी|फिर मैंने अंकितके कपड़े उठाए और शर्ट पहन ली| फिर हल्का सा गेट खोल कर अंकितको अपने कपड़े सुखाने के लिए पकड़ा दिए|
अब मैं बाक़ी के कपड़े पहनने के लिए देखने लगी|मैंने देखा पर मुझे पैंट नहीं मिल रही थी| मैंने अंकितको आवाज देकर पूछा, पैंट कहां है?उसने बोला, वहीं दरवाजे के पीछे तो टंगी है|मैंने कहा, नहीं है|
उसने बोला, अरे होगी वहीं … और कहां जाएगी|मैंने बोला, नहीं है बाबा| यहां सिर्फ शर्ट थी|अंकित एकदम से बोला, अरे सॉरी दीदी … वो तो पापा शायद घर ले गए होंगे धुलवाने के लिए!
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा, ये क्या मज़ाक है … अब मैं यहां क्या पहनूं अंकित बोला, कोई बात नहीं| आप थोड़ी देर ऐसे ही अन्दर कुंडी लगा कर बैठो … एक घंटे में कपड़े सूख जाएंगे| तब पहन कर बाहर आ जाना|
उस वक़्त मैं मजबूर थी क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था|मैं उस कमरे के अन्दर एक चारपाई पर सिर्फ शर्ट में बैठी हुई थी|कुछ देर बाद लाइट चली गयी तो कमरे में अंधेरा हो गया|
मैं थोड़ा घबरा सी गयी तो मैंने अंकितको आवाज लगाई|उसने कहा, कोई बात नहीं दीदी| मैं यहीं बाहर हूँ| अभी आ जाएगी लाइट|लगभग 5 मिनट बाद लाइट भी आ गयी|मैंने अंकित को बता दिया कि लाइट आ गयी है|
उसने कहा, ट्यूबवेल चला दो| अपने आप नहीं चलेगा|मैंने कहा, मुझे चलाना नहीं आता|उसने कहा, अरे जो मैं बता रहा हूँ| वो बटन दबा दो| मैंने कहा, मुझे नहीं पता| यहां इतने सारे तार हैं| मुझे बिजली से डर लगता है|
अंकितबोला, ठीक है| मैं चला देता हूँ … आप गेट खोलो|मैं बोली, अरे ऐसे कैसे गेट खोल दूं| मेरे कपड़े दो|उसने बोला, कपड़े तो अभी बिल्कुल गीले हैं| आप ऐसा करो गेट के पीछे छुप जाओ|
मैं नहीं देखूंगा और मोटर भी चला दूंगा|मैंने कहा, अरे लाओ गीले कपड़े ही पहन लूंगी| कोई बात नहीं अंकित बोला, आप डरो मत| एक मिनट भी नहीं लगेगा और काम हो जाएगा|
मैंने सोचा कि थोड़ी सी देर की बात ही है| खोल देती हूँ गेट|मैंने कहा, ठीक है| पर देखा कि गेट के पीछे का हैंडल टूटा हुआ था|मैंने कहा, मैं क्या पकड़ कर खोलूं| गेट का हैंडल तो टूटा हुआ है| कुछ पकड़ने को है ही नहीं|
उसने कहा, अरे हां वो हैंडल लगवाना था| कोई बात नहीं| आप कुंडी खोल दो| मैं बाहर से धक्का लगा कर खोल दूंगा|मैं गेट की आड़ में खड़ी हो गयी और कुंडी खोल दी| अंकितने अभी भी अपने सारे कपड़े उतार रखे थे|
वो सिर्फ कच्छे में अन्दर आ गया|अन्दर आ कर उसने कहा, गेट पकड़ कर रखना वरना हवा से बंद हो जाएगा|मैं पीछे छुपे,छुपे ही गेट पकड़ लिया और अंकितमोटर चलाने लगा|
मैंने अपनी शर्ट को नीचे सरकाने के लिए जैसे ही हाथ से पकड़ा मेरे हाथ से गेट छूट गया और धड़ाम से बंद हो गया| अंकित भागा भागा आया और गेट पकड़ने की कोशिश की| पर तब तक वो फंस गया था|
अंकित बोला, ये क्या किया दीदी| अब फंस गया ना गेट| एक पल के लिए हम दोनों भूल गए कि हम दोनों ही आधे नंगे है|फिर थोड़ी देर बाद सब सामान्य हुआ तो अंकितने बोला, कोई बात नहीं| आप चारपाई पर बैठो| मैं कुछ जुगाड़ करके गेट खोलता हूँ|
पर ऐसे माहौल में ध्यान तो भटकता ही है| मैं अंकित के आधे नंगे शरीर को देख रही थी और वो मेरी नंगी टांगों को| कुछ देर तक ऐसे ही हम एक दूसरे को देखते रहे| मैंने कहा, प्लीज ऐसे मत देखो ना| मुझे शर्म आती है|
अंकित बोला, तो आप भी तो मत देखो न| मुझे भी शर्म आती है|पर ना चाहते हुए भी हम दोनों बार बार एक दूसरे को ही देख रहे थे|अब तक मुझे समझ आ चुका था कि आज कुछ कांड होने जा रहा है|
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फिर हम दोनों ही वहां पड़ी चारपाई पर थोड़ा सा दूर दूर बैठ गए|काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे और एक दूसरे को देख देख कर हल्के हल्के उत्तेजित होते रहे|फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ|
मैं खुद ही उसकी तरफ धीरे धीरे खिसकने लगी और वो मेरी तरफ|अब हम दोनों काफी नजदीक बैठे थे|मैं ऊपर उसकी आंखों में देख रही थी और वो मेरी आंखों में|तभी मेरा हाथ अपने आप उसकी छाती और बाजुओं पर फिरने लगा|
मानो मेरा शरीर मेरे बस में नहीं था और अपने आप चल रहा था|धीरे धीरे मैं थोड़ा सा उचक कर उसके होंठों के पास अपने होंठ ले गयी|एक पल के लिए मैंने उसकी आंखों में देखा और बस अगले ही पल हमारे होंठ मिल गए|
हम दोनों की आंखें बंद हो गईं|इस वक़्त हम दोनों दुनिया की फिक्र से दूर| एक दूसरे के होंठों को किस कर रहे थेबिना कुछ बोले| बिना कुछ सोचे समझे| हम बस एक दूसरे के होंठों को हल्के हल्के दबा कर छू रहे थे|
फिर मैंने आंखें खोलीं और हल्के हल्के मुस्कुराते हुए नीचे हो गयी|उधर अंकितभी मुस्कुरा रहा था| हमारे बीच रिश्तेदारी की दीवार गिर चुकी थी|अंकित बोला, दीदी मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, स्श्ह … बस तुरंत अपने होंठ उसके होंठ पर रख कर जोर से दबाए और जोर जोर से चूमने लगी|
अब अंकितभी जोर जोर से मेरे होंठों को अन्दर बाहर करते हुए चूस रहा था और हम ऐसे ही कुछ देर तक एक दूसरे में खोये हुए किस करते रहे|आखिर जब किस करके मन भर गया| तब हम अलग हुए|
मेरे अन्दर हवस की आग लगी हुई थी और उधर अंकितका लंड भी पूरा खड़ा ही चुका था| अंकित मुझे देख कर एक बार मुस्कुराया और बस मुझे जोर से धकेल कर दीवार से सटा दिया|
अब वो ऊपर नीचे हो होकर जबरदस्ती मेरे होंठों को किस करने लगा|मैं भी उसका पूरा साथ दे रही थी और कमरे का माहौल और गर्माता जा रहा था| करीब दो मिनट तक वो ऐसे ही मुझे दबाए जोर जोर से चूमता रहा|
वो बीच बीच में बोलता रहा, आह … आहह … दीदी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ … उमम्ह … पुच्छह … पुच्छ … आपको पता नहीं| मैंने इस पल का कितना इंतज़ार किया है … मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी |
कि एक दिन मैं आपके इतने करीब आ जाऊंगा|वो किसी प्यासे की तरह मेरे होंठों को जोर जोर से चूस चूस कर अपनी प्यास बुझाता रहा| इधर उसका जिस्म मेरे जिस्म से रगड़ रहा था और उसका लंड मेरे चूत को रगड़ रगड़ कर मेरी प्यास बढ़ा रहा था|
जब उसका मेरे होंठों को चूस कर पूरा मन भर गया| तो वो एक पल को रुका| हमने एक दूसरे की आंखों में देखा और फिर से एक दूसरे के चेहरे को| गर्दन को| कंधों को किस करते हुए आगे बढ़ने लगे|
अब तो कोई शंका ही नहीं थी कि आगे क्या होना हैअंकितने खुद ही मेरी शर्ट के बटन एक एक करके खोलना शुरू कर दिए|जैसे ही उसने ऊपर के 3 बटन खोले| मुझे एक बार फिर से ख्याल आया कि ये मैं क्या कर रही हूँ|
ये मेरा रिश्ते में भाई है| मैंने इसके साथ ऐसे कैसे कर सकती हूँ|मैंने कहा, रुको विपिन| हमें यहीं रुक जाना चाहिए| मत भूलो मैं तुम्हारी बहन हूँ| प्लीज रुक जाओ|मैंने उसके हाथ अपनी शर्ट के बटन पर ही रोकने चाहे| पर अंकितइस कदर जोश में था |
कि उसने कहा, आज मत रोको दीदी| वरना मैं मर जाऊंगा| आज हम दोनों सिर्फ एक लड़का और लड़की हैं और हमारा रिश्ता सिर्फ जिस्मों का है| मुझे आपका जिस्म भोगना है| आज मत रोको मुझे|
इसी के साथ ही उसने मेरी शर्ट के दोनों हिस्सों को पकड़ा और जोर से फाड़ कर पीछे को खोल दी|इसके साथ ही मेरा आगे का शरीर उसके आगे नंगा हो गया|मैंने शर्म के मारे अपने बूब्स को हथेलियों से ढक लिया और टांगें भी आपस में मोड़ कर सिकोड़ सी लीं ताकि अंकितसे अपनी जवानी छुपा सकूँ|
अंकितमेरे करीब आया और धीरे से अपनी नंगी बहन के कंधों पर हाथ रख कर बोला, दीदी| इधर देखो मेरी आंखों में|मैंने शर्माते हुए उसकी आंखों में देखा|उसने बड़े प्यार से कहा, दीदी| आप घबराओ मत … हमारी ये बात किसी को पता नहीं चलेगी|
सब हम दोनों के बीच ही रहेगा|मैंने भी हल्का सा सिर सहमति में हिलाया| फ़िर अंकितने मेरी हथेलियों को पकड़ा और धीरे धीरे उन्हें जबरदस्ती नीचे करने लगा|शुरू में मैंने हल्का सा विरोध किया|
पर धीरे धीरे उसने मेरे दोनों हाथ नीचे कर ही दिए|फ़िर अंकितधीरे धीरे अपने हाथ मेरे बूब्स पर ले गया और उन्हें हल्के हल्के दबाने लगा|इसके साथ ही उसने मेरी चूचियों को हल्के हल्के मसलना भी शुरू कर दिया|
कुछ देर बाद मैं भी पूरे जोश में आ गई थी तो उसका पूरा साथ दे रही थी|अब मैंने अपनी शर्ट भी पूरी उतार दी थी और उसके सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थी| इस वक़्त अंकितमेरी छाती को चूम रहा था और मेरे दूध सख्त होते जा रहे थे|
उधर अंकितके कच्छे में उसका लंड फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था|मैंने खुद को अंकितसे झटके से अलग किया| इससे अंकितएकदम से चौंक गया|उसने पूछा, क्या हुआ दीदी?
मैंने एक पल को बहुत ही गंभीर भाव से उसे देखा| फिर अगले ही पल मैं भी मुस्कुरा दी और घुटनों के बल बैठ गयी|मैंने उसका कच्छे एक झटके में नीचे सरका दिया|उसका लंड एकदम से हाथी की सूंड की तरह ऊपर नीचे झूलते हुए मेरे सामने खड़ा था|
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मैंने ऊपर अंकितकी आंखों में देखा और मेरी आंखों में देख कर पूछा, दीदी| मैंने सुना है कि शहर में लड़कियां लड़कों का लंड मुँह में ले कर चूस लेती हैं| ऐसा सच है क्या?मैंने एक शैतानी भरी मुस्कुराहट दी और कहा, तुम्हें क्या लगता है?
बस ये कह कर मैंने उसका लंड पकड़ लिया| लंड की जड़ से ऊपर तक हाथ फेरा और उसे एक दो बार प्यार से सहलाया|फिर अचानक से उसके लंड को किस कर दिया| अंकित की तो मानो जान ही ऊपर को निकल गयी|
उसने जोर की आहह … भरी|मैंने थोड़ा कसके मुट्ठी बंद करके उसके लंड पर पीछे को दबाया तो उसके लंड का सुपारा बाहर आ गया| मैंने कहा, देखते जाओ शहर में क्या क्या करती है |
लड़कियां ,मैंने अपने बंद होंठ उसके लंड पर दबाते हुए सुपारे को होंठों से रगड़ा और धीरे धीरे लंड मुँह में लेते हुए चूसने लगी| अंकित तो सातवें आसमान पर उड़ने लगा था|
उसकी आंखें बंद हो गई थीं और उसके मुँह से बस ‘आहह … स्स … आहह … दीदी … आहह … बहुत मजा आ रहा है … आहह … दीदी …’ की आवाजें निकल रही थीं| इस वक्त वो बड़ी मस्ती भरी आहें और कराहें अपने मुँह से निकाल रहा था|
मैंने धीरे धीरे लंड चूसने की रफ्तार बढ़ा दी और उसकी उत्तेजना बढ़ती चली गयी|दोस्तो| आपको मेरी नंगी बहन की कहानी में मजा आ रहा होगा| यदि आपका लंड खड़ा हो गया है तो अभी हिलाना मत|
मैं जल्द ही अपनी चुदाई की कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर होती हूँ| बस आप मेल करना न भूले| आपकी प्यारी सी पल्लवी सिंह धन्यवाद|
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