अंकिता का सील खेत में तोड़े (Young Girl Sex Story)
सभी दोस्तों को नमस्कार, सुनाएं कैसे हो आप लोग? इस बार में आप लोगो के ऐसी कहनी लाया हु| जिसे पढ़ के आप पानी में भी आग लगा सकते है
मेरा नाम कुंदन है, मैं गोरे रंग का एक छरहरे बदना का युवक हूं। बात तब है जब मैं १० में पढ़ता था। मुझे खेलकुद में काफी रुचि थी जिस से मेरा शरीर एकदम फिट रहता था। स्कूल में मेरा बड़ा सन्मान था, सभी मेरी इज्जत करते थे। सब लड़कियों मुझे किसी ना किसी बहाने से बात करती थी लेकिन मुझे उनके कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।
मुझे जो लड़की पसंद थी वो मेरे गाल की थी। उसका नाम सरिता था, वो मुझसे एक कक्षा पीछे थी। सरिताछोटे कद की एक गोरी और स्वस्थ शरीर की खूबसूरत लड़की थी जिस पर स्कूल के काई लड़के मरते थे।
लेकिन सरिता किसी को खास लाइन नहीं देती थी। मैं पसंद करता था मगर एक समस्या यह थी कि मेरे और उसके घर के लोगो में कुछ दिन पहले झगडा हुआ था। इसके चलते सब की बोलचाल बंद थी। अपनी तरफ से बोलने की मेरी हिम्मत नहीं होती थी, डर था कि कहीं वो अपने घर में जा के शिकायत न कर दे।
वो गॉव की लड़की के साथ घर जाति थी और मैं अपनी साइकिल से जाता था। मैं काफी मजकिया टाइप का था , गांव की सभी लड़कियां मुझ से बात करती थी लेकिन सरिता चुप रहती थी। जब भी मैं कोई हंसने वाली बात कहता तो बाकी लड़कियां खूब मजा लेती लेकिन सरिता सिर्फ धीरे से मुस्कान देती थी।
दिन ऐसे ही बित रहे था । गाँव की स्कूल में अंताक्षरी की प्रतियोगिता का योजना हुआ। मैंने भी हिस्सा लिया और सरिता ने भी। वो अपनी कक्षा में अव्वल थी और मैं अपनी कक्षा में। काई दौर चले अंत में अपनी टीम में मैं और वो अपनी टीम में बच्ची।
अब मेरे और उसके बीच में मुकाबला था। खूब जो अजमाईश हुई। चींटी में जीत उसकी हुई। मैंने वही मुबारकबाद दी उसे भी मुझे मुस्कान कर धन्यवाद कहा।
लेकिन उसके बाद भी बहुत दिन बीते लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। लेकिन एक चीज जरूर बदली थी कि ममता मुझे देखा के अब मुस्कुराती थी। एक दिन स्कूल में जाते समय वो उझे रास्ते में मिली।
मैंने कहा, सरिता एकला क्यों जा रही हो आओ मेरी साइकिल पर बैठ जाओ। वो मुस्कुरा के बोली, साइकिल में कैरियर तो नहीं है कहा बैठूंगी।
मैंने हंस के कहा, आगे आ जाओ डंडे पर! उसे कहा, नहीं तुम्हारा डंडा मुझे गडेगा मैं नहीं बैठूंगी। मैंने कहा, नहीं गडेगा नहीं, तुम आओ तो सही।
वो थोडा सीरियस होते हुए बोली, देखो पीछे दो लड़के आ रहे हैं तुम जाओ। फिर कभी साइकिल पर बिठाना। मुझे मन मार कर जाना पड़ा। काई दिन बीत गए पर सरिता के करीब जाने का मौका नहीं मिला।
अगस्त का माहिना था और आकाश में काले बदले ने डेरा डाला हुआ था,बरिश के शुद्ध अव्सर थे। उस दिन मेरा तथा घंटा खाली था तो मैंने कुछ देर इधर उधर घूमता रहा। फिर सोचा कहीं बारिश ना हो जाए इसली छुटी होने के आधा घंटा पहले ही साइकिल उठाई और घर की और चल पड़ा।
अभी स्कूल से थोड़ा ही दूर आया था मैं बुंदे पड़ने लगी। मैंने साइकिल भगाई, मैं तेज बारिश शुरू होने के पहले ही घर पहुंचना चाहता था। स्कूल से लेकर मेरे गांव तक एक नहरिया थी जिसकी बगल में खेत और एक जगह पर आम का बाग पड़ता था। बारिश तेज होती चली जा रही थी। मैंने देखा आज आम के बाग के थोड़ा पहले ही एक लड़की लंबी चल में चली जा रही थी। मैंने साइकिल और भगाई, नजदीक से देखा तो वो सरिता ही थी।
मुझे बड़ी खुशी हुई, मैंने ब्रेक लगाया और कहा, आओ जल्दी साइकिल पर।
उसके पहले चारो तरफ देखा और तसल्ली की कोई देख तो नहीं रहा है। फिर मुस्कान के वो साइकिल के आगे के डंडे पर बैठ गई। मुझे तो जैसे दौलत मिल गई। मैंने सरिता को बिठा के साइकिल चलाना शुरू कर दिया। मेरे जांघ बार बार सरिता की जांघो को छू रहे हैं।
बैरश में भीगी लड़की, जवान ख़ूबसूरत जिस्म मुझे पागल कर रहे थे। धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा होकर उसकी पीठ में गड़ने लगा। वो सिमट गई पर कुछ बोली नहीं।
तब तक आम का बाग आ गया और बारिश भी तेज हो गई थी। साइकिल रोक कर मैंने कहा, सरिता बारिश काफी तेज हो गई है थोड़ी देर किसी पेड़ के नीचे रुक लिया जाए। बारिश कम होगी तो चलते हैं। उसे कहा, ठीक है।
और साइकिल से उतरकर एक पेड के नीचे हम दोनो ही खड़े हो गए। मैं उसे ऊपर से नीचे तक देख रहा था। क्या कयामत लग रही थी वो! भीगने की वजह से उसके कपड़े शरीर पर चिपक के परदर्शी हो गए थे, सलवार जगह जगह चिपक के उसकी मंसल जांघो का प्रदर्शन कर रही थी. छाती के ऊपर दुपट्टा रखा था, उसके चूची मैं नहीं देख पा रहा था।
मुझे इस तरह से घूरते हुए देख के वो बोली, क्या देख रहे हो?
नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही, इतना कह के मैं मुस्कान।
सरिता बोली, मुझे मत बनाओ, मैं सब समझती हूं।
मेरी चोरी पकड़ी गई, मैंने बात बदलते हुए कहा, नहीं मैं नहीं कह रहा था कि तुम्हारा दुपट्टा भीग गया है उसको निचोर लो।
सरिता मेरी मंशा समझ रही थी, उसे मस्कुरते हुए अपना दुपट्टा हटाया और निचोरने लगी।
दुपट्टे के हाथों से जैसे मेरे ऊपर बिजली गिरी। गीली कुर्ती उसकी छतियो से चिपक गई थी जिस से उसकी छतियो का काफी हिस्सा नुमाया हो रहा था, मेरा मन कर रहा था कि तुरंत पी लू!
मैंने धीरे से उसके कंधे के ऊपर हाथ रखा। कोई भी विरोध नहीं किया उसने | उसे अपनी नजरे निचे कर ली। यह देख के मेरी हिम्मत बढ़ा गई और मैंने अपने दोनो हाथ उसकी छति के ऊपर रख दिए। जैसे ही मैंने उसके चूची दबने चाहे उसके मेरे हाथ पकड़ लिए और चेहरा मेरे चेहरे के करीब कर दिया।
मैंने छोकदार उसका सर पकड़ लिया और उसे चूमने लगा। ऊपर से गिरती हुई पानी के बुंदे उसको गरम और कामुक बना रही थी। मैं उसके होठो को चूमने लगा। मस्ती से उसकी आंखे बंद हो चुकी थी।
मेरा हाथ उसकी पीठ से फिसलता हुआ उसके गांड तक जाकार उसकी कामुकता को जागने लगा। वो भी जोश में आकार मुझसे बुरी तरह से लिपट गई। मैं कुर्ती के ऊपर से ही उसके निप्पल के चारो और उन्गली करने लगा वो सीहर उठी।
धीरे से मैंने उसकी कुर्ती को ऊपर उठाकर उसकी गोल चूची को नंगा कर दिया। उसे ब्रा नहीं पाहिनी थी, उसकी चूची तन गई थी। गोल व भरी हुई चूची पर पानी की बुंदे और भी खूबसूरत लग रही थी. मैंने एक निप्पल को मुह में लेकर चूसना शारू किया और दूसरे को मसल रहा था।
इधर मेरे लंड का बुरा हाल था। मेन चेन खोलकर लंड बहार निकला और लंड सरिता को पकड़ा दिया। उसे लंड पकड़ लिया और धीरे धीरे से सहलाने लगी। 5 मिनट के बाद मैंने उसके सलवार का नाड़ा खोलना चाहा लेकिन उसे मुझे रोक दिया और बोली, रास्ते का काम है। कोई आ गया तो?
बात मेरी भी समझ में आ गई। बागल में मकई का खेत था, मैं सरिता को लेकर खेत में घुस गया। मकई काफी बड़ी हुई थी इतनी की आदमी खड़ा हो तो बहार से ना दिखे।
खेत में घुसकर मैंने सरिता की सलवार को निकाल दिया। काले रंग की पेंटी में उसकी पावरोटी फूली हुई थी। थोडे से विरोध के बाद मैंने उसकी पैंटी में भी हाथ डाला दिया। चुत गीली हो रही थी जिसे मैं थोड़ी देर तक सहलता रहा।
सरिता काफी गर हो चुकी थी। अब मैंने उसकी पेंटी निकल दी और बैठ के उसकी चुत को चटने लगा। उसके मुह से सिसकियारिया निकल रही थी थोड़ी ही देर में उसका पानी छुटने लगा। वो मेरे सर को अपनी चुत पर जोर से दबने लगी। मैं खड़ा हुआ और अपने लंड को उसके मुह के पास रख दिया।
पहले तो उसने मन किया कि मैं नहीं मुँह में डालूँगी लेकिन थोड़ा समझाएं पर उसने लंड का आगे का हिस्सा अपने मुह में लिया। मैं धीरे धीरे उसके मुह को छोड़ने लगा। वो भी मन लगाकार चुस रही थी।
कुछ देर में मुझे लगा कि मेरा पानी निकलने वाला है तो मैंने लंड उसके मुह से निकला लिया और उसकी चुत पर रगड़ने लगा। वो आहहहहहहहहहहहहहहह कर रही थी।
थोड़ी देर में वो अपनी चुत ऊपर उठाने लगी तो मैंने लोहा गरम देख के हाथोड़ा मार दिया। लंड का आगे का हिस्सा उसकी चुत में डाल दिया मेरा, उसका ध्यान बाटने के लिए मैं उसकी छाती चूसने लगा। बारिश के पानी से उसके चाहरे पर जो भी बुंदे थी वो भी मैंने चाट ली।
उसका दर्द कम हो चूका था। मैंने उसके होठो को अपने होठो की जिराफ्ट में लिया और एक जोर का झटका दे दिया। लंड आधा रास्ता पार कर चूका था। वो काँप उठी और अपने हाथ जोर से पटकने लगी। बड़ी मुश्किल से मैं उसे शांत कर पाया।
हॉंथ, निपल्स चुसा चुसा तब वो शांत हुई। यह सब करते करते मैं धीरे धीरे से अपना लुंड उसकी चुत में अंदर बहार कर रहा था। 5 मिनट के बाद उसको भी मजा आने लगा था, वो अब जोर जोर से धक्का देकर मेरा सहयोग करने लगी।
मैंने चुदाई की गति को बढ़ा दिया। उसके मुह से लगतार सिसकारिया निकल रही थी। चुत कसी होने की वजह से मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूं, मैंने तुरत अपना लंड निकला लिया और घोड़ी बनाकर लंड अंदर डाल दिया। उसके मुह से आह निकल गई।
मैंने ताबरतोड़ चुदाई चालू कर दी, वो मुझसे हाथ से इशारा से रोक रही थी मगर मेरे ऊपर तो शैतान है थी जैसे। बैरश अपने प्योर वेग ए और मैं भी इस तेज बारिश में सरिता की तेज चुदाई कर रहा था।
करिब 5-6 मिनट की चुदाई के बाद मेरा पानी निकल गया। हम एक दूसरे से जोर से लिपट गए और काफी देर तक वैसे ही पड़े रहे। बारिश भी अब कम हो चुकी थी।
हम दोनो ने खड़े हो के अपने कपडे पाहन लिए। मेरे लंड में घाव हो गया था टाइट छूट की वजह से और सरिता की चुत भी दुख रही थी। हमने एक दूसरे को किस किया और फिर मैंने अपनी साइकिल पर बैठा लिया। अब की वो मेरा लंड कमर पर टच होने पर सिमट नहीं रही थी |