बाबा ने जंगल में भाभी के साथ किया मंगल part-1 (Bhabhi Sex Story)
दोस्तों ये कहानी कुछ अलग हटकर है। तो चलिये अब ज्यादा समय वेस्ट ना करते हुए अपनी स्टोरी पर आती हूँ।
ये कहानी मेरी है यानि सोनम की। तो ग्रेजुएशन खत्म होते ही घरवालों ने मेरी शादी करा दी। लड़का भी खानदानी था। शादी से पहले हर लड़की के कुछ सपने और अरमान होते हैं।
मुझे मेरे सारे सपने धूमिल होते नजर आने लगे। शादी हुई तो समय के साथ मैं मां भी बन गई। अब मैं दो बच्चों की मां हूं। मेरे दोनों बच्चे शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं। पति का दिल्ली में बिजनेस है।
अभी दो साल पहले मेरे पति ने ऋषिकेश में अपनी नई फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन खरीदी, उसके बाद वहां पर कंस्ट्रक्शन का काम शुरू करवा दिया।
मुझे वहां जाने का मौका नहीं मिला और जब सारा काम मुकम्मल हो गया तो मेरे पति मुझे वहां लेकर गए। मुझे वहां की आबो हवा बहुत अच्छी लगी। हमारी फैक्ट्री लगभग जंगल में ही थी। फैक्ट्री के पास ही एक छोटा सा घर भी मेरे पति ने बनवाया था।
घर के पास से ही एक कच्ची पगडंडी नीचे घाटी की तरफ जाती थी, जो एक गांव में पहुंचती थी। मगर गांव बहुत दूर था। 2-4 दिन तो ठीक ठाक कटे पर बाद में मैं बोर होने लगी।
अब सारा दिन घर में क्या करती? एक दिन सोचा कि चलो नीचे गांव में चलकर देखती हूं। अपने पति को फैक्ट्री भेजने के बाद मैं तैयार होकर पगडंडी पर चल पड़ी। थोड़ा सा आगे जाने पर पूरा जंगल शुरू हो गया।
बिल्कुल शांत सिर्फ झींगूर और किसी पंछी के बोलने की आवाज आ रही थी। काफी देर चलने के बाद भी कोई गांव नजर नहीं आया। फिर मेरे दिल मे थोड़ा डर आया कि इस जंगल में मैं अकेली थी। अगर कोई जंगली जानवर आ जाए तो? फिर मन मे ख्याल आया कि आज तक अपने बेडरूम के अलावा खुले में प्रकृति की गोद में कभी प्यार नहीं किया।
अगर मेरे पति होते और यहां मेरे साथ वह सब करते तो कितना मजा आता। इस खयाल से ही मेरे तन बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। मान लो अगर मेरे पति मुझे यहां पर इस सुनसान जंगल में मेरे कपड़े उतारकर ठोकते तो मैं उनका कभी विरोध न करती और खूब मजे से चुदती।
अभी मैं यह सब सोच सोच कर चली जा रही थी कि थोड़ी दूरी पर मैंने एक झोपड़ी देखी। मैं अनायास ही उस झोपड़ी की तरफ बढ़ गई जब मैं उस झोपड़ी के पास पहुंची तो मुझे लगा जैसे यह किसी साधू की कुटिया है।
मैं अंदर गई तो देखा कि अंदर एक साधू बाबा, ध्यान में मग्न बैठे है। सर पे जूड़ा, बढ़ी हुई दाढ़ी, चौड़े कंधे, उम्र करीब 45 से 50 साल, बाल अधपके, सीना भी बालों से भरा हुआ। उनको देखते ही बाबा के लिए मेरे मन में श्रद्धा भर आई। मैंने झुककर बाबा के चरणों में प्रणाम किया। बाबा ने आंखें खोली और मुझे आशीर्वाद दिया।
बाबा – कहो बच्चा इतनी दूर यहां कैसे आई।
मै – बाबाजी हमारी फैक्ट्री है यहां, वो जो ऊपर सड़क के पास नई बनी है। मैं तो बस गांव की तरफ जा रही थी, रास्ते में आपकी कुटिया देखी तो आपका आशीर्वाद लेने चली आई।
बाबा – अच्छा अच्छा क्यों बनाते हो फैक्ट्री में?
मै – जी दवा बनाते हैं बहुत सारी।
लेकिन मैंने यह भी गौर किया कि बाबा बात करते करते कई बार मेरे स्तनों को भी देख रहे थे। बातचीत के दौरान उन्होंने मेरे सारे बदन का मुआयना कर लिया था। खैर, उस दिन तो कोई ज्यादा बात नहीं हुई और मैं थोड़ी देर बाद ही बाबा का आशीर्वाद लेकर वापिस आ गई।
जंगल में इतनी दूर चलने के बाद भी मुझे साधू बाबा के अलावा कोई भी नहीं दिखा। मैं चाहती थी कोई जवां मर्द मिले तो मैं अपनी बोरियत दूर करने का जुगाड़ ढूंढ लूँ। पर इस सुनसान जगह पर कोई नहीं था।
फिर मैं भी निराश होकर अपने घर को चली गई। रात को पतिदेव ने खूब चुदाई करके मुझे तसल्ली करवा दी। मगर मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था। अगले दिन सुबह मैं फिर से तैयार हो कर जंगल की तरफ चल पड़ी। आज मैंने टी शर्ट और कैप्री पहनी हुई थी।
कपड़े स्किन टाइट होने की वजह से मेरे बदन की हर गोलाई बड़ी उभर कर दिख रही थी। मैं वैसे ही घूमती घूमती फिर बाबा जी की कुटिया की तरफ चल दी। आज बाबा कुटिया में नहीं थे। मैंने कोई आवाज नहीं की। बस बड़ी शांति से घूमते हुए कुटिया के पीछे पहुंच गयी। वहां बाबा एक छोटा सा लंगोट पहने लकड़ियाँ काट रहे थे।
बाबा का शरीर बड़ा ही कसा हुआ था। लंगोट ने सिर्फ उनका लिंग ही छुपा रखा था, वरना इस लिबास में बाबा तो बिल्कुल नंगे ही थे। उनकी दो मजबूत मस्कुलर टांगें और उन टांगों के ऊपर दो बड़े से गोल तरबूज़।
आज बाबा के कसरती बदन का भरपूर नजारा दिखा था। बाबा को ऐसे देखते ही मेरी चूत गीली होनी शुरू हो गई। मैंने वैसे ही सोचा कि बाबा इतने बलिष्ठ हैं। अगर कोई कुंवारी कन्या को ये चोदने लग जाए तो ये तो उसकी बैंड बजा देंगे। कुंवारी क्यों? अगर मेरे को भी चोदें तो मेरी भी बैंड बजा देंगे।
यह सोच कर मेरे मन में एक विचार आया। मैंने अपनी टी शर्ट के ऊपर के तीनों बटन खोल दिए ताकि मेरा एक बड़ा सा क्लीवेज दिखे। अब आधी छातियाँ नंगी और आधी टांगे नंगी लेकर अगर मैं बाबा के सामने जाऊं तो हो सकता है कि बाबा की घंटी बज जाए और मैं बाबा जैसे बलिष्ठ और बलवान मर्द का भी सुख भोग सकूं। यही सोच कर मैं बाबा के पास ही चली गई और उन्हें प्रणाम किया।
मै – प्रणाम बाबा!
बाबा मुझे देखकर बिल्कुल भी नहीं सकपकाए, बल्कि बड़े विश्वास से बोले..
बाबा – जीते रहो बच्चा! भगवान तुम्हारा कल्याण करें।
मै – बाबा भगवान का पता नहीं पर आप मेरा कल्याण जरूर कर सकते हैं।
मेरे दिल की बात मेरी जुबान पर आ ही गई। अब बाबा थोड़ा चौककर बोले..
बाबा – क्या मतलब बच्चा?
मै – बाबा पति पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है? वो तो मेरी तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं देते। काम से आते हैं और खाना खाकर सो जाते हैं और मैं बिस्तर पर तड़पती रहती हूं। आप बताओ बाबा मेरे सुंदर रूप में क्या कमी है?
बाबा ने मुझे ऊपर से नीचे तक किसी बड़े ठरकी की तरह घूरा और कहा तुम तो परमात्मा की एक बहुत ही सुंदर कृति हो।
मै – वही तो…. इस सुंदर रूप और इस आकर्षक बदन को जब पति देखे ही ना तो औरत क्या करे?
यह कहकर मैंने जान बूझ कर रोने का नाटक करना शुरू किया।
बाबा बोले – मैं तुम्हें एक जड़ी देता हूं, अपने पति को देना और फिर देखना।
यह कह कर बाबा अंदर झोपड़ी में चले गए, तो मैं भी उनके पीछे पीछे झोपड़ी के अंदर चली गई। बाबा ने अपना आसन ग्रहण किया और अपने झोले से एक जड़ी बूटी सी निकाल ली। मैं बिल्कुल बाबा के चरणों के पास नीचे बैठ गई। मैंने उनके पांव पकड़े और अपना सर उनकी गोद में रख दिया और जान बूझ कर रोती रहीं। जैसे मैं बहुत दुखी हूं। बाबा ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे ढांढस बंधाया।
बाबा – चिंता मत कर बेटी यह जड़ी बहुत कारगर है। 2 से 3 दिन में ही अपना असर दिखा देगी।
मुझे लगा कि बाबा चाहते थे कि मैं उनके पांव छोड़ कर उनके सामने ठीक से बैठ जाऊ। पर मैंने बाबा के पांव नहीं छोड़े। बाबा ने एक दो बार मेरा सर अपने चरणों से उठाने की कोशिश भी की, मगर मैं नहीं हटी। यही स्थिति शायद बाबा के लिए भी बड़ी अजब रही होगी। मेरे आंसू बाबा के टखनों पर गिर रहे थे।
मेरी गरम साँसे बाबा की एड़ियों को छू रही थी। थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ जैसी कोई चीज मेरे माथे को छू रही थी। अपने अंदाज से मैं जान गई थी कि बाबा का सोया हुआ घोड़ा अब जाग गया था और खड़ा हो गया है।
मैंने सर उठा कर बाबा की तरफ देखा। बाबा बड़े प्यार से मेरा सर सहला रहे थे और उन्होंने बड़े प्यार से मेरी आखों में देखा। मैंने देखा कि बाबा के लंगोट में उभार आ गया था और लंगोट में आस पास गहरे घने बाल भी दिख रहे थे। मैंने बाबा के लंगोट को घूरते हुए बाबा से पूछा..
मै – बाबा प्रसाद नहीं दोगे?
ऐसी ही कुछ और कहानियाँ; बहू ने जेठ जी के अंधेपन का फायदा उठाया